दूर तक सूंघने वाला बच्चा जासूस


राजीव रंजन

2 स्‍टार (दो स्‍टार)
कलाकार: खुशमीत गिल, सुरेखा सीकरी, सुष्मिता मुखर्जी, राजेश पुरी, अमोल गुप्ते
लेखक व निर्देशक: अमोल गुप्ते


लेखक, अभिनेता और निर्माता-निर्देशक अमोल गुप्ते को बच्चों से विशेष प्यार है। अब तक उन्होंने बच्चों को केंद्र में रख कर ही अपनी फिल्मों का ताना-बाना बुना है। चाहे बतौर लेखक 'तारे जमीन' पर हो या बतौर लेखक-निर्देशक 'स्टेनली का डब्बा' और 'हवा हवाई', इन सभी फिल्मों के केंद्र में बच्चे हैं। '
' का कथानक भी बच्चों के ईर्द-गिर्द ही बुना गया है।

मुम्बई की एक सोसाइटी में रहने वाले बच्चे सन्नी गिल (खुशमीत गिल) के परिवार का अचार का बिजनेस है और इस व्यवसाय के लिए अच्छी घ्राण शक्ति (सूंघने की क्षमता) जरूरी है, लेकिन सन्नी सूंघ नहीं सकता। सन्नी की दादी (सुरेखा सीकरी) इससे बहुत चिंतित हैं। वह सन्नी का इलाज कराने के लिए हर जुगत भिड़ाती है, पर कामयाबी नहीं मिलती। एक बड़ा डॉक्टर बताता है कि सन्नी के नाक की एक नस बंद है, लिहाजा वह कभी सूंघ नहीं सकता। सन्नी की इस कमी का उसके क्लासमेट मजाक उड़ाते हैं। एक दिन सन्नी घूमते-घूमते अपने स्कूल की बंद पड़ी पुरानी लैबोरेट्री में पहुंच जाता है। वहां उसके हाथ से टकरा कर दो जार और फ्लास्क गिर जाते हैं। दोनों के केमिकल जब आपस में मिलते हैं तो उनमें जबर्दस्त रिएक्शन होता है। इससे सन्नी की जोरदार छींक आती है और उसके नाक की बंद नस खुल जाती है। अब उसकी घ्राण शक्ति एक आम आदमी से कई गुना ज्यादा हो जाती है।

फिल्म अचार को बनाने और सूंघने के दृश्य से शुरू होती है, जिसमें सन्नी की कमी के बारे में पता चलता है। जब सन्नी की इस कमजोरी के कुछ और दृश्य उसके किरदार को स्थापित करते हैं तो ऐसा लगता है कि अमोल गुप्ते एक संवेदनशील आख्यान रचने वाले हैं। लेकिन थोड़ी देर में ही भ्रम टूटने लगता है। महज डेढ़ घंटे की यह फिल्म इतनी हिचकोले खाती है कि पता ही नहीं चलता, अमोल चाहते क्या हैं! एक अच्छा-खासा विषय गड्डमड्ड हो जाता है। अपना असर खो देता है। यह फिल्म बहुत छोटी है, फिर भी इसमें कई सीन बेमतलब के लगते हैं। ऐसा लगता स्क्रिप्ट पर पर्याप्त काम नहीं किया गया है। निर्देशक-लेखक अमोल बहुत हड़बड़ी में दिखाई देते हैं।

वैसे कुछ हिस्सों में फिल्म ठीक भी लगती है। सन्नी के रूप में खुशमीत गिल का काम अच्छा है। उसके किरदार में मासूमियत है, जो भली लगती है। अंत में जो विलन निकलता है, वह भी मासूम है, भले ही सीनियर सिटीजन होने की कगार पर है। सुरेखा सीकरी का रोल छोटा है, पर वह अपने चिर-परिचित अंदाज में हैं। सुष्मिता मुखर्जी बंगाली लहजे में बोलती हैं और उनका काम सिर्फ अपने पति को पीटना है। अमोल गुप्ते भी विशेष भूमिका में हैं। क्यों हैं, पता नहीं! बच्चों को फिल्म थोड़ी ठीक लग सकती है।

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