फिल्म ‘हाउसफुल 4’ की समीक्षा
बिलकुल खाली है यह सितारों से फुल हाउस
राजीव रंजन
निर्देशक : फरहाद सम्जी
कलाकार: अक्षय कुमार, बॉबी देओल, रितेश देशमुख, कृति सैनन, कृति खरबंदा, पूजा हेगड़े, चंकी पांडे, रंजीत, जॉनी लीवर, शरद केलकर, राणा डग्गूबटी, मनोज पाहवा, नवाजुद्दीन सिद्दीकी
स्टार- 1.5
कुछ फिल्मों को लेकर निर्माता-निर्देशक आश्वस्त होते हैं कि उन्होंने कैसी फिल्म बनाई है, किसके लिए बनाई है। ऐसी फिल्मों के दर्शक भी आश्वस्त रहते हैं कि उन्हें क्या मिलने वाला है, इसलिए वे भी दिमाग घर पर छोड़ कर थियेटर में जाते हैं। ‘गोलमाल’, ‘धमाल’, ‘हाउसफुल’ आदि फिल्में इसी श्रेणी की फिल्में होती हैं। इनसे दर्शकों को ‘लॉजिक’ नहीं, बस कॉमेडी के ‘मैजिक’ की उम्मीद होती है। लेकिन कॉमेडी का मैजिक भी न मिले, तो निराशा होती है। ‘हाउसफुल 4’ ऐसी ही फिल्म है।
हैरी (अक्षय कुमार) अपने भाइयों मैक्स (बॉबी देओल) और रॉय (रितेश देशमुख) के साथ लंदन में एक सैलून चलाता है। हैरी के कानों में जब भी कोई तेज आवाज पहुंचती है, तो वह कुछ देर के लिए उसकी स्मरण शक्ति गायब हो जाती है। वह चीजों को भूल जाता है। यह आदत उसे और उसके भाइयों को एक बार काफी महंगी पड़ जाती है। पुलिस से भाग रहा एक डॉन (शरद केलकर) अपने 50 लाख पाउंड तीनों भाइयों को रखने के लिए देता है। तेज आवाज सुन कर हैरी पैसे की बात भूल जाता है और पैसों की पोटली को कपड़े समझ कर उसे वॉशिंग मशीन में धो देता है। डॉन के आदमी अब उनके पीछे पड़े हैं। पैसे लौटाने के लिए तीनों एक योजना बनाते हैं और एक बेहद अमीर आदमी ठकराल (रंजीत) की तीन बेटियों पूजा (पूजा हेगड़े), कृति (कृति सैनन) और नेहा (कृति खरबंदा) को पटाते हैं।
तीनों भाइयों को उनकी प्रेमिकाएं अपने पिता से मिलवाने ले जाती हैं, लेकिन उनके पिता को लड़के पसंद नहीं आते। उसी समय कृति के साथ एक दुर्घटना हो जाती है और हैरी उसकी जान बचाता है। और उसी क्रम में हैरी को अपने पूर्व जन्म की झलक मिलती है। खैर, पिता लड़कों से प्रभावित हो जाते हैं और शादी की मंजूरी दे देते हैं। अब ग्लोब घूमाकर शादी का वेन्यू तय किया जाता है। ग्लोब बार बार घूम कर एक ही जगह के नक्शे पर रुकता है, जिसका नाम सितमगढ़ है। हालांकि आप यह भी सोच सकते हैं कि ग्लोब में सितमगढ़ नाम के भारत के एक छोटे शहर का नक्शा कैसे दिख सकता है, जिसमें भारत का नक्शा भी कितना बड़ा दिखाई देता है, यह सबको पता है! (खैर, हमने पहले ही कह दिया है कि हम लॉजिक के आधार पर कोई बात नहीं करेंगे।) सब लोग शादी के लिए भारत के एक पुराने शहर सितमगढ़ पहुंचते हैं। यहां उन्हें आखिरी पाज्ता (चंकी पांडे) मिलता है और उन्हें देख कर पहचान लेता है कि सबका पुनर्जन्म हुआ है।
हैरी को भी अपना पिछला जन्म पूरी तरह याद आ जाता है कि वह माधोगढ़ का राजकुमार बाला देव सिंहथा और मैक्स अंगरक्षक धर्मपुत्र तथा रॉय नृत्यगुरु बांगड़ू महाराज थे। ठकराल सितमगढ़ का महाराजा था और कृति उसकी बड़ी बेटी राजकुमारी मधु थी। नेहा और पूजा का नाम राजकुमारी मीना और माला था। वहीं आखिरी पाज्ता राजमहल का सेवक पहला पाज्ता था और सितमगढ़ के होटल का मैनेजर (जॉनी लीवर) उसकी प्रेमिका गिगली था। अब यहां एक पेंच फंस जाता है कि पिछले जन्म में बाला की शादी मधु से होनी थी, लेकिन इस जन्म में मधु यानी कृति की शादी मैक्स से होने वाली है। अब बाला यानी हैरी इस गड़बड़ी को दूर करने की कोशिशों में जुट जाता है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या है कि उसे और आखिरी पाज्ता को छोड़ बाकी किसी को पूर्व जन्म याद ही नहीं आता और अजीबोगरीब स्थितियां पैदा हो जाती हैं।
फिल्म में एक जन्म की कहानी सन् 1419 में दिखाई गई है और दूसरे जन्म की कहानी 2019 में। यानी इसका कथानक 600 सालों का है। पूर्व जन्म को दर्शाने के लिए उस कालखंड को रचने की कोशिश की गई है। फिल्म की पटकथा ठीक है और यह दोनों जन्मों की घटनाओं को ठीक से जोड़ने में सफल रही है, लेकिन संवाद मजेदार नहीं हैं। इसकी वजह से इस फिल्म में कॉमेडी की खुराक काफी कम पड़ गई है, जबकि ऐसी फिल्मों में सबसे ज्यादा उम्मीद और जरूरत उसी की रहती है। कुछ ही सीन ऐसे हैं, जिनमें हंसी आती है। बाकी सारी चीजें बहुत रुटीन-टाइप हैं, जो न तो हंसाती हैं, न मनोरंजन करती हैं। मध्यांतर के पहले फिल्म में कोई खास मजा नहीं है। हां, मध्यांतर के बाद फिल्म थोड़ी-सी चुस्त और मनोरंजक होती है, लेकिन वो फिल्म का बेड़ा पार लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है। फिल्म के सेट बहुत सुंदर हैं और सिनेमेटोग्राफी भी अच्छी है।
फिल्म में सबसे अहम भूमिका, जाहिर है, अक्षय कुमार की ही है और वही इस फिल्म को अपने कंधों पर ढोते हैं। वही कुछ कॉमेडी का रस पैदा करते हैं। रितेश देशमुख के अभिनय में न कुछ नया है और न असरदार। वही पुराना अंदाज, जिसमें कोई ताजगी नहीं है। बॉबी देओल के बारे में कुछ कहने लायक नहीं है। नायिकाओं में कृति सैनन कुछ ठीक हैं, बाकी पूजा हेगड़े और कृति खरबंदा के लिए कुछ खास है नहीं। जॉनी लीवर और चंकी पांडे बस मुंह चमका कर बोलते हैं। न उनके किरदार में कोई मजे का तत्व है और न अभिनय में। राणा डग्गूबटी बस भयानक दिखने के लिए हैं और रंजीत ‘आ ऊ’ करने के लिए, जबकि शरद केलकर के लिए कुछ खास करने को है नहीं, फिर भी वह ठीक लगे हैं। एक दृश्य में नावजुद्दीन सिद्दीकी भी बाबा बन कर आए हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी भी कोई असर नहीं छोड़ती, बल्कि फिल्म को और हल्का ही कर जाती है।
निर्देशक ने अपनी तरफ से इसे एक कॉमेडी फिल्म के तौर पर पेश करने की बहुत कोशिश की है, लेकिन यह फिल्म उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। बस इसमें ढेर सारे सितारों और भव्यता की चकाचौंध है, नयापन और ताजगी बिल्कुल नहीं। इसका नाम हाउसफुल है, लेकिन यह खाली है।
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