फिल्म ‘वॉर’ की समीक्षा

रोमांच, एक्शन और सितारों का मेल

राजीव रंजन

निर्देशक : सिद्धार्थ आनंद

कलाकार: हृतिक रोशन, टाइगर श्रॉफ, वानी कपूर, आशुतोष राणा, अनुप्रिया गोयनका

2. 5/5 स्टार

बॉलीवुड ने पिछले कुछ सालों में शायद यह संकल्प लिया है कि उसे अपने संसाधनों और बजट के दायरे में हॉलीवुड को एक्शन व तकनीक के मामले में टक्कर देनी है। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि हॉलीवुड की तकनीक और एक्शन से सजी फिल्में भारत में अच्छा-खासा कारोबार कर रही हैं। पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड ने ‘धूम सिरीज’, ‘बाहुबली सिरीज’, ‘टाइगर जिंदा है’, ‘कमांडो सिरीज’ और ‘बागी सिरीज’ जैसी फिल्में बनाई हैं और इनमें लगभग सभी बहुत सफल भी रही हैं। ‘वॉर’ भी ऐसी ही फिल्म है।
बड़े सितारे, बड़ा बजट, बड़ा रोमांच, जबर्दस्त एक्शन और खूबसूरत विदेशी लोकेशन और हां, एक कामचलाऊ प्लॉट के मिश्रण से जो उत्पाद तैयार किया गया है, उसका नाम ‘वॉर’ है। पिछले साल एक फिल्म आई थी ‘ऐयारी’, जिसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा और मनोज बाजपेयी थे। ‘वॉर’ का प्लॉट भी कमोबेश उसी लाइन पर है। हालांकि इसका कैनवस और बाकी हर पक्ष ‘ऐयारी’ से बहुत बड़ा है। जाहिर है, बजट भी।
भारतीय इंटेलिजेंस का ऑफिसर कबीर (हृतिक रोशन) गद्दार हो जाता है। वह अपने ही देश के प्रभावी लोगों को मारने लगता है। कर्नल लूथरा (आशुतोष राणा) गद्दार कबीर को खत्म करने का जिम्मा खालिद (टाइगर श्रॉफ) को सौंपते हैं, जिसे कबीर ने ही प्रशिक्षित किया था। खालिद इस बात को लेकर परेशान है कि कबीर जैसा देशभक्त ऑफिसर गद्दार क्यों बन गया! वह कबीर से टकराता है और वजह जानने की कोशिश करता है, पर कबीर नहीं बताता। दोनों के बीच चोर पुलिस वाली दौड़ शुरू होती है। कई राज खुलते हैं, कभी कोई खलनायक नजर आता है, कभी कोई। कहानी में कई ट्विस्ट आते हैं। और अंत में, यह इशारा भी मिलता है कि इसका सीक्वल या प्रीक्वल भी आ सकता है।
वॉर को देखते हुए बार-बार यह एहसास होता है कि कहानी व किरदारों में थोड़ा फेरबदल करके और थोड़ी-सी सेकुलरिज्म की छौंक लगा कर ‘धूम सिरीज’ का ‘अपग्रेडेड’ संस्करण बना दिया गया है। हृतिक और टाइगर आज के दौर के सबसे शानदार एक्शन परफॉर्मर हैं। इनमें से किसी एक का होना ही भरपूर एक्शन की गारंटी है, और जब दोनों किसी फिल्म में मिल जाएं, तो अंदाजा लगा सकते हैं कि उस फिल्म में एक्शन का लेवर क्या होगा! जाहिर है, ‘वॉर’ में कमाल का एक्शन है। सच कहें, तो इस फिल्म का असली मसाला यही है। बाकी सब चीजें बस इस मसाले को गाढ़ा करने के लिए इस्तेमाल की गई हैं।
फिल्म के लोकेशन बहुत खूबसूरत हैं और आंखों को आनंद देते हैं। एडिटिंग भी अच्छी है। फिल्म कसी हुई लगती है, हालांकि गाने कहानी की रफ्तार को कम करते हैं, लेकिन फिल्म के ग्लैमर में वृद्धि करते हैं। फिल्म का संगीत बहुत याद रखने लायक तो नहीं है, लेकिन मजा देने वाला जरूर है। इसमें दो गाने हैं और उनके शुरुआती बोल सुन कर दो बड़े हिट पुराने गानों ‘जय जय शिवशंकर’ और ‘घुंघरू टूट गए’ की याद आ जाती है। हालांकि दोनों में तुलना पुराने गानों के साथ अन्याय होगा। खैर ‘वॉर’ के दोनों गानों में डांस शानदार और झूमाने वाला है। यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि हृतिक और टाइगर, दोनों एक्शन के साथ डांस के भी महारथी हैं। विषय के लिहाज से निर्देशक सिद्धार्थ आनंद का काम ठीक है। वह फिल्म को ठीक तरीके से पेश करने और रोमांच परोसने में पूरी तरह सफल रहे हैं। उन्होंने फिल्म के सभी किरदारों को ठीक से पेश किया है।
हृतिक रोशन निस्संदेह बॉलीवुड के सबसे आकर्षक सितारों में से हैं और वह इस भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प लगते हैं। उनकी स्टाइल, बॉडी लैंग्वेज, अभिनय, संवाद अदायगी सब कुछ इस किरदार के लिए परफेक्ट हैं। वह जब भी पर्दे पर आते हैं, लहर पैदा करते हैं। टाइगर भी प्रभावित करते हैं। एक्शन दृश्यों में वे कई बार हृतिक से बीस नजर आते हैं। एक्शन और डांस में तो वह शानदार हैं ही और इस फिल्म में वह अभिनय के मामले में भी पिछली फिल्मों से बेहतर हैं। वाणी कपूर की भूमिका छोटी है। कुछ कुछ अतिथि भूमिका जैसी। आशुतोष राणा के लिए करने को कुछ खास था नहीं, लेकिन जो कुछ भी उनके हिस्से आया है, उन्होंने ठीक से निभाया है। अनुप्रिया गोयनका ने अपने छोटे-से किरदार में अच्छी लगी हैं। बाकी कलाकारों ने भी अपने हिस्से का काम ठीक किया है।

अगर आपको एक्शन, रोमांच पसंद है, तो आपको यह फिल्म अच्छी लगेगी। अगर आप इस चक्कर में नहीं पड़ें कि जो हो रहा है, क्यों हो रहा है, ऐसा तो नहीं होता, वगैरह वगैरह, तो आप इसे आराम से देख जाएंगे।

(हिन्दुस्तान में 5 अक्तूबर, 2019 को सम्पादित अंश प्रकाशित)

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