शून्य
राजीव रंजन
जाड़े की सर्द हवा
दरवाजों पर दस्तक देती है ऐसे
जैसे कोई हलके हाथों से
दरवाजा खटखटा रहा हो
उठता हूँ सिगरेट की राख झाडते हुए
दरवाजा खोलता हूँ लेकिन
कुछ भी दिखाई नहीं देता
हवा भी नहीं
सिर्फ महसूस होती है उसकी चुभन
और दिखता है केवल सिगरेट का खाली धुआं.
फिर मैं झाड़ देता हूँ
सिगरेट की बची राख.
जाड़े की सर्द हवा
दरवाजों पर दस्तक देती है ऐसे
जैसे कोई हलके हाथों से
दरवाजा खटखटा रहा हो
उठता हूँ सिगरेट की राख झाडते हुए
दरवाजा खोलता हूँ लेकिन
कुछ भी दिखाई नहीं देता
हवा भी नहीं
सिर्फ महसूस होती है उसकी चुभन
और दिखता है केवल सिगरेट का खाली धुआं.
फिर मैं झाड़ देता हूँ
सिगरेट की बची राख.
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