सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता

तुम्हारे साथ रह कर अक्सर मुझे लगा है
कि हम असमर्थताओं से नहीं
संभावनाओं से घिरे हैं
हर दीवार में एक द्वार बन सकता है
और हर द्वार से
एक पूरा का पूरा पहाड़ गुज़र सकता है

शक्ति अगर सीमित है
तो हर चीज़ अशक्त भी है
भुजाएं अगर छोटी हैं
तो सागर भी सिमटा है
सामर्थ्य इच्छा का
केवल दूसरा नाम है
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वीणा-वादिनी वर दे

सेठ गोविंद दास: हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के बड़े पैरोकार

राही मासूम रजा की कविता 'वसीयत'