फिल्म ‘लूटकेस’ की समीक्षा

अपराध-राजनीति का गठजोड़ और आम आदमी की दुविधा

राजीव रंजन

निर्देशक : राजेश कृष्णन

कलाकार: कुणाल खेमूरसिका दुग्गलरणवीर शौरीविजय राजगजराज रावआर्यन प्रजापतिनीलेश दिवेकरआकाश दभाड़े

स्टार-3

नाजायज पैसा आम आदमी के लिए पचाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसा पैसा उसे मुश्किलों में डाल देता हैउसकी जिंदगी में उथल-पुथल मचा देता है। इसलिए ईमानदारी की कमाई ही उसके लिए अच्छी हैक्योंकि तमाम दिक्कतों के बावजूद कम से कम वह अपने परिवार के साथ शांतिपूर्ण जीवन तो बिता सकता है। रुखा सुखा खाय के ठंडा पानी पीवदेख पराई चुपड़ी मत ललचावै जीव’ यही संदेश देती है फिल्म लूटकेस’, जो ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर प्रसारित की जा रही है।

नंदन कुमार (कुणाल खेमू) मुंबई के एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करता है। दिन-रात मेहनत करने के बावजूद वह अपनी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता। उसकी पत्नी लता (रसिका दुग्गल) हमेशा पैसे की तंगी की शिकायत करती रहती हैतो बेटा आयुष (आर्यन प्रजापति) की मांगें कभी खत्म नहीं होतीं। एक दिन नंदन को रास्ते में एक लाल रंग का सूटकेस मिलता हैजिसमें 10 करोड़ रुपये हैं। वह उहापोह में पड़ जाता है कि सूटकेस को ले या न ले। वह रस्मअदायगी के लिए एक बार आवाज लगाता है, ‘आखिरी बार पूछ रहा हूंये सूटकेस किसका है?’ और उसके बाद सूटकेस को अपने घर ले आता है। उसे लगता है कि पैसों से भरा यह सूटकेस उसकी परेशानियों को हल कर देगा। पर उसके सामने सबसे बड़ी समस्या इतनी बड़ी रकम को छुपाने की हैक्योंकि उसकी पत्नी लता एक पुजारी की बेटी है और उसे बेईमानी का पैसा पसंद नहीं।

यह सूटकेस एक भ्रष्ट नेता पाटिल का हैजिसे उसने एक स्थानीय गुंडे उमर के जरिये एक दूसरे भ्रष्ट नेता को भिजवाया है। बाला भी एक स्थानीय गुंडा हैजो अपने गुर्गों गे्रजुएट (आकाश दभाड़े) और राजन (नीलेश दिवेकर) से नेशनल ज्योग्राफिक चैनल की भाषा में बात करता है। उसके आदमी भी उस सूटकेस को हड़पने के लिए लगे हैं। वे उमर के लोगों से सूटकेस छीनने में कामयाब हो जाते हैं। इस क्रम में दोनों गैंग के बीच फायरिंग शुरू हो जाती है। इसी बीच पुलिस आ जाती है। पुलिस के आ जाने से राजन और ग्रेजुएट सूटकेस को छुपा कर वहां से भाग जाते हैं। जब ग्रेजुएट और राजन सूटकेस उस जगह से लेने के लिए वापस आते हैंतो सूटकेस गायब होता है। वे बाला को इसके बारे में बताते हैं और फिर से उसकी तलाश में लग जाते हैं। उधरसूटकेस के गायब होने की खबर पाटिल को मिलती हैतो वह बौखला जाता है। वह सूटकेस की तलाश में तेजतर्रार पुलिस ऑफिसर कोल्ते (रणवीर शौरी) को लगा देता है। वह अपने खबरी को काम पर लगा देता है और सूटकेस को हासिल भी कर लेता हैलेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती...

इस फिल्म को एक आम आदमी की आर्थिक परेशानियों और राजनीति व अपराध के गठजोड़ के धागे से बुना गया है। यह फिल्म आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी में पैसे की कमी से आने वाली दिक्कतों को दिलचस्प अंदाज में पेश करती हैतो राजनीति और अपराध के गठजोेड़ को भी दिखाती हैजो देश और समाज को खोखला कर रहा है।

फिल्म की पटकथा ठीक है और किरदारों को भी दिलचस्प अंदाज में गढ़ा गया है। हर किरदार की अपनी एक खासियत है। उनके संवाद भी उसी तरह लिखे गए हैंजो गुदगुदाते हैं। एक सामान्य विषय को निर्देशक राजेश कृष्णन ने रोचक अंदाज में पेश किया है। फिल्म मनोरंजन तो करती ही हैसाथ ही बड़े सलीके से अपनी बात को भी कह देती है। लेखक और निर्देशक ने न तो इसे उपदेशात्मक होने दियान बोझिल और न चालू। राजेश कृष्णन बतौर निर्देशक असर छोड़ते हैं। उन्होंने इसे कभी पटरी से उतरने नहीं दिया है। फिल्म में गीत-संगीत बेहद साधारण है। कोई गाना याद रह जाने लायक नहीं बना है।

कलाकारों का अभिनय इस फिल्म को और बेहतर बनाता है। पटकथा में जो थोड़ी-सी खामियां हैंकलाकार अपने अभिनय से उसकी भरपाई कर देते हैं। कुणाल खेमू ने पैसों की कमी से परेशान एक आम आदमी की भूमिका प्रभावी तरीके से निभाई है। वह अपने आसपास के ही किसी व्यक्ति की तरह दिखते हैं और उनका अभिनय भी बहुत सहज है। रसिका दुग्गल एक आम गृहिणी की भूमिका में एकदम मुफीद लगती हैं। एक शिकायती पत्नी और एक संस्कारी महिलादोनों पहलुओं को उन्होंने सहजता से निभाया है। गजराज राव ने एक बार फिर बेहतरीन अभिनय से छाप छोड़ी है। वह हौले-हौले संवाद इस अंदाज में बोलते हैं कि मजा आ जाता है। विजय राज की संवाद अदायगी भी मजेदार है। जब वह अपने गुर्गों से बात करते हैंतो उनकी भाव-भंगिमा देखने लायक होती है। रणवीर शौरी भी एक सख्त और तेजतर्रार पुलिस अधिकारी की भूमिका में जंचते हैं। बाल कलाकार आर्यन प्रजापति भी अच्छे लगे हैं। नीलेश दिवेकर और आकाश दभाड़े भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहे हैं। अन्य कलाकारों ने भी अपने किरदार ठीक से निभाए हैं।

डॉर्क कामेडी लूटकेस एक मनोरंजनक फिल्म हैजिसे देखने पर निराशा नहीं होगी।

(हिन्दुस्तान में 15 अगस्त, 2020 को संपादित अंश प्रकाशित)

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