फिल्म ‘खुदा हाफिज’ की समीक्षा

घिसी-पिटी कहानी और घिसा-पिटा अंदाज

राजीव रंजन

निर्देशक : फारुक कबीर

कलाकार: विद्युत जामवालशिवालिका ओबेरॉयअन्नू कपूरशिव पंडितआहना कुमराबिपिन शर्मानवाब शाह

दो स्टार

एक कहावत है- काठी की हांडी बार-बार आग पर नहीं चढ़ती’, पर बॉलीवुड के लिए ऐसी व्यावहारिक कहावतें मायने नहीं रखतीं। इसीलिए यहां एक ही विषय पर घिसे-पिटे अंदाज में फिल्में बनाने की परंपरा जमाने से चली आ रही है। इसी सिलसिले में एक और फिल्म शामिल हो गई है, ‘खुदा हाफिज’, जो ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर दिखाई जा रही है।

भारत से असंख्य लोग रोजगार के लिए संयुक्त अरब अमीरात (यूएई)सउदी अरबकतरकुवैतओमान आदि खाड़ी देशों में जाते हैं। उनमें से अनेक अपने भारतीय एजेंटों की धोखाधड़ी का शिकार होकर वहां बुरी तरह फंस जाते हैं। उनकी जिंदगी नरक बन जाती है। खुदा हाफिज’ की कहानी का एक सिरा इस पहलू से भी जुड़ा हैतो दूसरा सिरा प्रेम से जुड़ा है।

समीर चौधरी (विद्युत जामवाल) और नर्गिस चौधरी (शिवालिका ओबेराय) पति-पत्नी हैं। दोनों एक-दूसरे से टूट कर प्यार करते हैं। अभी शादी को कुछ ही दिन बीते हैं कि साल 2008 की वैश्विक मंदी की वजह से दोनों की नौकरी छूट जाती है। उनका परिवार आर्थिक संकट से घिर जाता है। नर्गिस नोमान की एक अच्छी कंपनी में नौकरी का विज्ञापन देखती है और इसके लिए आवेदन कर देती है। कंपनी का एजेंट नदीम (बिपिन शर्मा) नर्गिस को कहता है कि उसके आदमी उसे नोमान एयरपोर्ट पर रिसीव कर लेंगे।

नर्गिस नोमान पहुंचने के बाद समीर को फोन करती है। वह काफी घबराई हुई है। समीर पुलिस के साथ नदीम के पास पहुंचता है। नदीम बताता है कि नर्गिस एयरपोर्ट पर उसके आदमी को मिली ही नहीं थी। समीर नोमान जाने का फैसला करता है। उसकी मुलाकात वहां टैक्सी ड्राइवर मुराद भाई (अन्नू कपूर) से होती है। नोमान पुलिस समीर की मदद नहीं करती है। वह नोमान में भारतीय दूतावास से मदद मांगता है। मुराद भाई के जरिये समीर को पता लगता है कि नर्गिस देह व्यापार करने वाले इज्तेक रेजिनी के कब्जे में है। दूतावास से उसे फौरन मदद नहीं मिल पातीतो वह खुद ही नर्गिस को ढूंढ़ने का फैसला करता है और नर्गिस तक पहुंच भी जाता हैपर उसे वापस नहीं ला पाता। बाद में दूतावास की मदद से केस नोमान पुलिस के दो अधिकारियों- तमीना हामिद (आहाना कुमरा) और फैज अबू मलिक को दे दिया जाता है। समीर दोनों के साथ मिलकर नर्गिस को वापस लाने के मिशन में लग जाता है। मुुराद भाई भी पूरा साथ देते हैं।

इस फिल्म को देखते हुए कभी भी ऐसा नहीं लगता है कि आप अभी रिलीज हुई फिल्म देख रहे हैं। न तो इस फिल्म की कहानी में कोई नयापन है और न ही प्रस्तुति में ताजगी है। यह फिल्म न तो प्रेम की शिद्दत का अहसास करा पाती हैन एक्शन में प्रभावित कर पाती है (जिसका स्कोप भी था और जो विद्युत जामवाल का मजबूत पक्ष भी है) और न ही रोजगार के लिए खाड़ी देशों में जाने वाले अनेक भारतीयों की पीड़ादायक स्थितियों ठीक से दिखा पाती है। इस फिल्म की थीम बागी 3’ से मिलती-जुलती हैजिसमें नायक टाइगर श्रॉफ अपने भाई को बचाने के लिए  सीरिया जाते हैंतो खुदा हाफिज’ में विद्युत एक काल्पनिक देश नोमान (जो खाड़ी मुल्क ओमान जैसा लगता है) जाते हैं। लेकिन कमजोर कहानी वाली बागी 3’ में एक्शन कमाल का थाजबकि खुदा हाफिज’ इस मामले में भी कमजोर है। इसमें भी एकाध एक्शन सीन हैंजिन्हें विद्युत जामवाल ने अच्छे-से किया है।

पटकथा ढीली है और निर्देशक फारुक कबीर ने भी फिल्म को रोचक बनाने के लिए अपनी ओर से कोई खास प्रयास नहीं किया है। संवादों में भी जान नहीं है। गीत-संगीत भी याद रहने लायक नहीं है। विद्युत जामवाल के अभिनय में कोई उल्लेखनीय बात नहीं है। उनको एक्शन के भी ज्यादा मौके नहीं मिले हैं। शिवालिका ओबेराय के सीन इतने कम हैं कि उनके अभिनय के बारे में कुछ कहा जा सके। अन्नू कपूर थोड़ा ठीक हैं। आहना कुमरा अपने किरदार में ठीक लगी हैं। शिव पंडित का अभिनय ठीकठाक है। बिपिन शर्मा और नवाब शाह का अभिनय ठीक है। कुल मिलाकरयह फिल्म निराश करती है।

(22 अगस्त, 2020 को हिंदुस्तान में प्रकाशित)

 


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