वेब सिरीज ‘बंदिश बैंडिट्स’ की समीक्षा

एक सुरीली सिरीजजो मन को तृप्त कर देती है

राजीव रंजन

निर्देशक : आनंद तिवारी

कलाकार: नसीरुद्दीन शाहश्रेया चौधरीऋत्विक भौमिकशीबा चड्ढाअतुल कुलकर्णीराजेश तैलंगकुणाल रॉय कपूरअमित मिस्त्रीत्रिधा चौधरीमेघना मलिक

चार स्टार

अमूमन अपराधहिंसा और राजनीतिक पूर्वग्रहों से भरी वेब सिरीज के बीच बंदिश बैंडिट्स’ मलय पर्वत से चलने वाली हवा की मानिंद सुगंध और ताजगी से भरी लगती है। जमाने के बाद संगीत पर आधारित कुछ ऐसा देखने को मिला हैजो रस में सराबोर कर देता है।

यह कहानी है संगीत सम्राट राठौर घराने के पं. राधे मोहन राठौर (नसीरुद्दीन शाह) और उनके परिवार कीजिसमें उनका बड़ा बेटा राजेंद्र (राजेश तैलंग)बहू मोहिनी (शीबा चड्ढा)छोटा बेटा देवेंद्र (अमित मिस्त्री) और पोता राधे (ऋत्विक भौमिक) हैं। यह कहानी पॉप संगीत की उभरती कलाकार तमन्ना (श्रेया चौधरी) की भी हैजो पॉप संगीत में मुकाम बनाना चाहती है। पंडित जी बहुत सख्त हैं और संगीत को लेकर कोई समझौता नहीं करते। राधे पंडित जी का उत्तराधिकारी बनना चाहता है।

संयोग से एक दिन तमन्ना की मुलाकात राधे से हो जाती है। वह राधे की गायकी से इतना प्रभावित होती है कि उसके साथ मिलकर पॉप और शास्त्रीय संगीत का फ्यूजन तैयार करना चाहती है। दरअसलउसकी एक म्यूजिक कंपनी से डील हुई हैलेकिन वह पूरा नहीं कर पा रही है। उसे लगता है कि राधे के साथ मिल कर वह म्यूजिक कंपनी के लिए हिट नंबर तैयार कर सकती है। लेकिन राधे को हमेशा पंडित जी का डर सताता है। उसे अपने परिवार और अपने प्यार के बीच फंसा है। राधे और तमन्ना अपनी अपनी मुश्किलों में फंसे एक-दूसरे के करीब आते जाते हैं। और इसी सबके बीच में पहली पत्नी से पैदा हुए पंडित जी के बेटे पंडित दिग्विजय (अतुल कुलकर्णी) आ जाते हैं और राठौर घराने के वास्तविक उत्तराधिकारी होने का दावा ठोक देते हैं। राठौर परिवार के कई राज धीरे-धीरे राधे के सामने खुलते हैं। जोधपुर राजघराने के राजा की मौजूदगी में राठौर घराने का उत्तराधिकारी चुनने के लिए संगीत सम्राट’ मुकाबले का आयोजन होता हैजिसमें पंडित जी के प्रतिनिधि के रूप में राधे अपने ताऊ पंडित दिग्विजय का मुकाबला करता है।

इस सिरीज को भारतीय और पॉप संगीत की जुगलबंदी वाली सिरीज के रूप में प्रचारित किया गया थालिहाजा इसमें हर तरह का संगीत हैलेकिन प्रधानता शास्त्रीय संगीत की ही है। यह सीजन मुख्य रूप से शास्त्रीय संगीत को ही ध्यान में रख कर बनाया गया है। हो सकता हैअगले सीजन में मॉडर्न संगीत को बराबर या अधिक जगह मिले। शंकर-एहसान-लॉय ने सिरीज के मूड के हिसाब से बेहतरीन संगीत दिया। जागो मोहन प्यारे’ बंदिश से शुरू हुई यह सिरीज पहले दृश्य में ही मन मोह लेती है। इसमें संगीत जितना बढ़िया हैगायकी भी उतनी ही कर्णप्रिय है। बंदिश बैंडिट्स’ का अंतिम एपिसोड तो शास्त्रीय संगीत का विभोर कर देने वाले कार्यक्रम लगता है। इसका हर कंपोजिशन अभिभूत कर देता है। गायकों की गायकी अभिभूत कर देने वाली है। सिर्फ संगीत ही नहींइसकी कहानीपटकथा और प्रस्तुती भी भाने वाली है। आनंद कुमार का निर्देशन अच्छा है। उन्होंने सिरीज को बहुत रोचक तरीके से पेश किया हैजिससे दर्शक शुरू से आखिर तक बंधे रहते हैं।

नसीरुद्दीन शाह का अभिनय सिरीज को ऊंचाई पर ले जाता है। वह एक संगीत साधक और गुरु की भूमिका में इतने स्वाभाविक दिखते हैं कि लगता ही नहींअभिनय कर रहे हैं। इसके अलावाउनके किरदार का एक कुटिलता भरा पहलू भी हैजो फ्लैशबैक में दिखता है। उसमें भी उन्होंने कमाल का अभिनय किया है। ऋत्विक और श्रेया की जोड़ी बहुत भली लगती है और दोनों अपने किरदार में एकदम फिट लगते हैं। ऋत्विक गाते हुए बहुत नेचुरल लगते हैंजब आलाप लेते हैंतब वह एकदम वास्तविक गायक की तरह लगते हैं। श्रेया भी बहुत प्रभावित करती हैं। उनका चुलबुलापन प्यारा लगता है। भावुक दृश्यों में भी वह असर छोड़ती हैं। अतुल कुलकर्णी सिद्धहस्त गायक की तरह लगते हैं। उनको देख कर मजा आ जाता है। शीबा चड्ढा अपनी आंखों से अपने दुख को बयां कर देती है। उनके चेहरे के भाव मन को भिगो देते हैं। कमाल का काम किया उन्होंने। राजेश तैलंग अच्छे अभिनेता हैं और पंडित जी के बड़े बेटे और राधे की पिता राजेंद्र की भूमिका में राजेश उनका काम बहुत अच्छा है। देवेंद्र के रूप में अमित मिस्त्री ने भी अच्छा काम किया है। संध्या की छोटी-सी भूमिका में त्रिधा चौधरी भी अच्छी लगी हैं। इस सिरीज के सारे ही कलाकार प्रभावित करते हैं।

निस्संदेह यह सिरीज संगीतप्रेमियों के लिए सुंदर उपहार है। इसे देख (सुन) कर मन तृप्त हो जाता है। यह सिरीज वास्तव में बंदिश की बैंडिट हैजो दिल लूट लेती है।

(livehindustan.com में 7 अगस्त और हिन्दुस्तान में 8 अगस्त 2020 को संपादित अंश प्रकाशित)

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